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मोदी राज में आय असमानता का हाल अंग्रेज़ी राज से भी बदतर - रिपोर्ट

 17 Apr 2024

भारत में असमानता की स्थिति अंग्रेज़ों के राज से भी बदतर हो गयी है। हाल ही में जारी वर्ल्ड इनक्वालिटी लैब की रिपोर्ट ने यह चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है।  रिपोर्ट के अनुसार, 2014 के बाद से भारत में आय असमानता और भी तेज़ी से बढ़ी है। यह असमानता ब्रिटिश-कालीन भारत से भी ज़्यादा दर्ज़ की गयी है। भारत में 162 अरबपतियों के पास जो कुल शुद्ध संपत्ति है, वह राष्ट्रीय आय के 25 फ़ीसदी हिस्से के बराबर है। जबकि यही हिस्सेदारी 1991 में केवल 1 फ़ीसदी थी।


भारत में आय असमानता दुनिया में सबसे अधिक

रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक दशक से भारत में अमीरों और गरीबों की कमाई के बीच खाईं बड़े पैमाने पर बढ़ी है। अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत में जो आज आर्थिक असमानता है वो ब्रिटिश काल से भी बुरी है। भारत की आर्थिक असमानता को दुनिया की सबसे ख़राब असमानताओं की श्रेणी में रखा गया है। रिपोर्ट में भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता की तुलना अमेरिका, ब्राज़ील और दक्षिणी अफ्रीका के देशों से की गयी है, जिनके मुक़ाबले भारत की स्थिति बहुत ख़राब दौर से गुज़र रही है।

लंदन स्थित हुरुन रिसर्च इंस्टीट्यूट 2024 द्वारा जारी वैश्विक अमीरों की सूची के अनुसार भारत में कुल अरबपतियों की संख्या 271 तक पहुंच चुकी है जिसमें 94 नये अरबपतियों की संख्या 2023 में शामिल की गयी है। यह संख्या अमेरिका में बढ़े अरबपतियों को छोड़कर अन्य देशों के मुक़ाबलों में सबसे अधिक है। इन अरबपतियों की कुल संपत्ति 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक या उससे अधिक है, जो कि दुनिया की संपत्ति का 7 फ़ीसदी है।



भारत के उद्योगपति दुनिया के अमीरों में शामिल

भारत के  मुकेश अंबानी, गौतम अडानी और सज्जन जिंदल जैसे उद्योगपतियों का नाम अब दुनिया के उन चंद मुट्ठीभर अरबपतियों की सूची में है जिसमें जेफ बेजोस और एलन मस्क का नाम शामिल है। कई आर्थिक रिपोर्टों में कहा गया है कि 2024 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर जीडीपी(सकल घरेलू उत्पाद) 8 फ़ीसदी पर रहने वाली है, जो दुनिया में सबसे अधिक वृद्धि दर वाले देशों जैसी होगी। साथ ही 2047 तक भारत जापान और जर्मनी को आर्थिक रूप से पीछे करते हुए,  तीसरी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आयेगा। ऐसे में भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता बहुत बड़ी चिंता का विषय है। आज भारत का अधिकतम पैसा 1 फ़ीसदी अमीर लोगों के हाथों में जा चुका है।



रिपोर्ट में शामिल तथ्य

रिपोर्ट को तैयार करते समय जिन तथ्यों को शामिल किया गया है उनमें शामिल है भारत की राष्ट्रीय आय का रिकॉर्ड, भारत की कर व्यवस्था, भारत में लोगों की कुल आय और खर्च, भारत में मौजूद धन का विभाजन आदि। भारत में आय की तुलना करने के लिए अर्थशास्त्रियों ने 1922 के बाद के आय से संबंधित आँकड़ों का मिलान आज के आँकडों से किया है। उनके अनुसार, भारत में 1930 से 1947 तक जो आय असमानता थी उससे भी ज़्यादा आर्थिक असमानता की स्थिति अब पायी गयी है। 1947 में 1 फ़ीसदी शीर्ष अमीरों के पास राष्ट्रीय आय का 20-21 फ़ीसदी हिस्सा हुआ करता था, जो आज बढ़कर 22.6 फ़ीसदी तक पहुंच चुका है।

अर्थशास्त्रियों ने 1961 के दौरान किये गये  आर्थिक सर्वेक्षण के नतीजों को  फोर्ब्स बिलियनेयर इंडेक्स की जानकारी के साथ जोड़कर देखा, जिससे पता चला कि उस वक्त 1 फ़ीसद लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40.1 फ़ीसदी हिस्सा था।


क्या है चुनौतियां

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बढ़ती असमानता का कारण सरकार का उद्योगपतियों के साथ बढ़ती साठगाँठ है। अगर भारत सरकार सार्वजनिक क्षेत्रों पर निवेश करें तो इसका फ़ायदा सभी लोगों को होगा, ख़ासकर मध्यम और गरीब तबकों को इसका विशेष फ़ायदा होगा। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कुछ वर्षों से भारत में उन आँकड़ों को जारी ही नहीं किया गया है, जिनसे भारत के लोगों की आर्थिक स्थिति को और भी अच्छे से समझा जा सके।